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हरिद्वार। धर्मनगरी हरिद्वार की यात्रा के दौरान आपने हर की पैड़ी और उसके आसपास तीर्थ पुरोहितों को जरूर देखा होगा।

हरिद्वार के तीर्थ पुरोहितों का इतिहास सदियों पुराना है. उतनी ही खास है तीर्थ पुरोहितों की बहियां, जिसमें देशभर में फैले उनके यजमानों की वंशावलियों को संजोकर रखा जाता है।

शास्त्रों में हरिद्वार को कलयुग का प्रधान तीर्थ बताया गया है. यहां साल भर गंगा स्नान के लिए तो लोग पहुंचते ही हैं। वहीं अपने दिवंगत परिजनों की अस्थि विसर्जन और उनके लिए श्राद्ध कर्म करने के लिए भी बड़ी तादाद में लोग पहुंचते हैं।

दूर-दराज से हरिद्वार पहुंचने वाले लोगों का विधिविधान से कर्मकांड कराने का काम यहां के तीर्थ पुरोहित करते हैं।

सदियों से तीर्थ पुरोहित और यजमानों का संबंध पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है. तीर्थ पुरोहितों के पास एक खास दस्तावेज होता है, जिसे बही कहा जाता है. यहां पहुंचने वाले हर यजमान की जानकारी तीर्थ पुरोहित बही में दर्ज करते हैं।

यजमान की पूर्वजों का नाम, उनके हरिद्वार आने की वजह और गांव पता सब दर्ज किया जाता है. सैकड़ो सालों से ये परंपरा यूं ही चलती आ रही है।

बही में दर्ज जानकारी इतनी सटीक और अधिकृत होती है कि सरकारी कामकाज और अदालतों में चल रहे वाद विवाद के निपटारे में भी काम आती है. तीर्थ पुरोहितों से मिले बिना हरिद्वार की यात्रा अधूरी मानी जाती है।

दूर-दराज से पहुंचने वाले लोग पुरोहितों से मिलकर यात्रा का ब्यौरा दर्ज करते हैं. तीर्थ पुरोहितों की बहियों में किसी भी यात्री की की पूरी वंशावली लिखी होती है।

इसलिए पुरोहितों के साथ यजमान का भावनात्मक लगाव भी होता है. इन दिनों पितृपक्ष चल रहे हैं।

लोग अपने दिवंगत परिजनों और पूर्वजों कि मोक्ष की कामना के लिए हरिद्वार पहुंचकर श्राद्ध कर रहे हैं. साथ ही तीर्थ पुरोहितों और यजमानों के पारंपरिक संबंध को भी आगे बढ़ा रहे हैं।

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