उत्तराखंड में एक बार फिर नगर निकाय चुनाव को लेकर सस्पेंस बढ़ता जा रहा है। राज्य सरकार ने निकायों में प्रशासकों का कार्यकाल फिर बढ़ा दिया है। शासन ने शनिवार को इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी।
इसके मुताबिक निकायों में नए बोर्ड का गठन होने तक प्रशासकों का कार्यकाल विस्तारित किया गया है।
इस आदेश से साफ है कि निकाय चुनाव एक बार फिर आगे के लिए खिसका दिए गए हैं। उत्तराखंड में नगर निकायों का पांच वर्ष का कार्यकाल पिछले वर्ष एक दिसंबर को समाप्त होने के बाद इन्हें प्रशासकों के हवाले कर दिया गया था। तब निकाय अधिनियम के मुताबिक छह माह के लिए प्रशासक नियुक्त किए गए थे।
लेकिन तैयारी पूरी नहीं हुई तो इस वर्ष दो जून को प्रशासकों का कार्यकाल तीन माह के लिए बढ़ा दिया था। अब यह अवधि खत्म होने से पहले ही शासन ने निकायों में प्रशासकों का कार्यकाल नए बोर्ड का गठन होने तक विस्तारित करने की अधिसूचना जारी की है।
सचिव शहरी विकास नितेश कुमार झा की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक गत वर्ष एकल समर्पित आयोग से निकायों में ओबीसी (अदर बैकवर्ड क्लास) को प्रतिनिधित्व संबंधी रिपोर्ट प्राप्त न होने के कारण निकायों में प्रशासक नियुक्त किए गए। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार निकायों में ओबीसी आरक्षण का नए सिरे से निर्धारण होना है।
इसके बाद लोकसभा चुनाव की आचार संहिता के चलते विलंब हुआ तो प्रशासकों का कार्यकाल बढ़ाया गया। वर्तमान में मानसून सीजन में अतिवृष्टि, भूस्खलन, बादल फटने जैसी घटनाएं हो रही हैं।
यही नहीं, निकायों में ओबीसी सर्वे में भी समय लगने की संभावना है। ऐसे में निकायों में प्रशासनिक शून्यता की स्थिति न हो, इसी के दृष्टिगत प्रशासकों का कार्यकाल विस्तारित किया गया है।
बता दें कि निकाय चुनाव को लेकर पूर्व में सरकार ने हाईकोर्ट में कहा था कि निकाय चुनाव 25 अक्टूबर तक करा दिए जाएंगे, लेकिन यह स्थिति भी नहीं बन पा रही है।
गैरसेंण में हुए विधानसभा के मानसून सत्र में निकायों में ओबीसी आरक्षण के लिए निकाय अधिनियम में संशोधन विधेयक विधानसभा की प्रवर समिति को सौंप दिया गया। प्रवर समिति को एक माह में अपनी रिपोर्ट देनी है। तत्पश्चात निकाय अधिनियम में संशोधन होगा।
प्रदेश में पंचायतों का कार्यकाल नहीं बढ़ाया जा सकता है। पंचायती राज निदेशालय ने शासन को रिपोर्ट सौंप दी है। ऐसे में साफ है कि प्रदेश में पंचायती चुनाव तय समय पर ही होंगे।
31 जुलाई को संगठन की मांग पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सचिव पंचायतीराज को प्रकरण का परीक्षण कर एक महीने के भीतर रिपोर्ट मांगी थी।
ग्राम पंचायत, क्षेत्र और जिला पंचायत प्रतिनिधि यह कहते हुए दो साल का कार्यकाल बढ़ाने की मांग कर रहे कि कोविड-19 की वजह से दो साल तक पंचायतों को कोई बजट नहीं मिला। संगठन की मांग पर सीएम ने मामले का परीक्षण कराने के निर्देश दिए थे।