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जमीने बचेंगी तो खेती-किसानी, गन्ना और गुढ़ बचेगा, तभी स्मृद्धि आयेगी

हरिद्वार। मूल निवास-1950 एवं मजबूत भू कानून को लेकर उत्तराखण्ड के विभिन्न नगरों में कई बड़ी रैलियां आयोजित करने के बाद मूल निवास-भू कानून समन्वय संघर्ष समिति ने अब हरिद्वार दस्तक दे दी है।

विभिन्न संगठनों से विचार विमर्श के बाद समिति ने पहाड़ी महासभा के साथ प्रेस क्लब में संयुक्त प्रेस कांफ्रेस कर 10 नवंबर को हरिद्वार में स्वाभिमान महारैली की घोषणा की है।
मूल निवास-भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि मूल निवास और भू कानून के मामले में जो स्थिति पहाड़ के लोगों के सामने है, वहीं स्थिति हरिद्वार के मूल निवासियों के सामने भी हैं। इस मामले में पहाड़ और मैदान की समस्याएं एक जैसी हैं।

आने वाले समय में यहां के मूल निवासियों के सामने बहुत बड़ी चुनौतियां हैं। क्योंकि यहां की जमीनों, कारोबार और नौकरियों पर संकट हैं। स्थानीय युवाओं की नौकरियों पर संकट है।

हरिद्वार की जमीन खुर्द-बुर्द हो रही हैं। यहां जमीने बचेंगी तो खेती-किसानी, गन्ना और गुढ़ बचेगा। किसान भूमिहीन हो रहे हैं। अगर भूमि नहीं होगी, किसानी नहीं होगी तो इस जिले और राज्य में स्मृद्धि कैसे होगी?

उन्होंने कहा कि सैनी, गुर्जर, चौहान जो 1950 से पूर्व यहां निवास कर रहे हैं। जिनकी पीढ़ियां आज भी विरासत को संभाले हुए हैं। मूल निवास उनके हित और हक की भी लड़ाई है। जबकि कुछ लोग मूल निवास 1950 और स्थायी निवास का राजनीतिकरण कर लोगों को गुमराह कर रहे हैं।

जो लोग हमें पहाड़ और मैदान में बांट रहे हैं उनका विरोध होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों के बहकावे में नही आना चाहिए इससे उनके हकों की लड़ाई कमजोर होगी।
श्री डिमरी ने कहा कि कुछ मामलों में पहाड़ से ज्यादा समस्यायें मैदान की हैं। उनकी जमीने खत्म हो रही हैं। भूमिधर भूमिहीन होते जा रहे हैं और उनकी जमीने औने-पौने दाम पर पूंजीपतियों और उद्योगपतियों के हाथों में जा रही हैं।

उद्योग लग रहे हैं तो उनमें भी स्थानीय युवाओं के बजाय उत्तराखण्ड की सीमा से लगते उत्तर प्रदेश के बिजनौर, सहारनपुर और मुजफ्फरनगर के लोगों को रोजगार मिल रहा है। यह गंभीर समस्या है।
संघर्ष समिति संयोजक का कहना था कि ग्रुप सी और ग्रुप डी की नौकरियां तक हमारे हाथ में नहीं हैं। राज्य की नौकरियों, रोजगार और सरकारी योजनाओं में यहां के मूल निवासियों की भागीदारी 90 प्रतिशत होनी चाहिए।

तभी इस राज्य का भला हो सकता है। उन्होंने कहा राज्य का मूल स्वरूप, हमारी पहचान और हमारी अस्मिता बचनी चाहिये। लेकिन आज राज्य की सांस्कृतिक परंपराओं पर भी खतरा मंडरा रहा है, जिससे आने वाली पीढ़ी का भविष्य भी सुरक्षित नहीं है।
लेकिन यह दुर्भाग्य है कि राज्य के कुछ जनप्रतिनिधि और अधिकारी राज्य से बाहरी लोगों के फर्जी निवास प्रमाण पत्र बनवा रहे हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड राज्य यहां के निवासियों के अनेकों बलिदान एवं संघर्षों के बाद राज्य अस्तित्व में आया। लेकिन दुर्भाग्य से राज्य के जल, जमीन, जंगलों पर राज्य के बाहरी व्यक्तियों का कब्जा हो रहा है।
मोहित डिमरी ने कहा कि राज्य में फर्जी तरीके से जो स्थायी निवास प्रमाण पत्र बनाये जा रहे है।ं इसकी भी जांच होनी चाहिए। सरकार को जल्द से जल्द राज्य में मूल निवास-1950 एवं सशक्त भू कानून राज्यहित में लागू करना होगा।

उन्होंने कहा कि सशक्त भू कानून एवं प्रेसिडेंसियल नोटीफिकेशन के अनुसार मूल निवास-1950 लागू करने की मांग को लेकर 10 नवम्बर को हरिद्वार में स्वाभिमान महारैली आयोजित की जाएगी। उन्होंने सभी से रैली में शामिल होने की अपील भी की।
इस अवसर पर पहाड़ी महासभा के अध्यक्ष तरुण व्यास ने कहा कि राज्यवासियों को रोजगार अपने राज्य में प्राथमिकता पर रोजगार मिलने चाहिए। उन्होंने कहा कि सदियों से उत्तराखण्ड में निवास करने वालों के अधिकारों पर डाका डाल कर उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।
प्रेस वार्ता में संघर्ष समिति के महामंत्री प्रांजल नौडियाल, सुमित, संजय सिल्सवाल सहित पहाड़ी महासभा के हिमांशु रावत, संजय सिलसवाल, अजय नेगी, अतुल गुसाई, दुर्गेश उनियाल, विनोद चौहान, दीपक पांडे, रवि बाबू शर्मा, बीएन जुयाल, जसवंत सिंह बिष्ट, दीपक नौटियाल, आदि मौजूद रहे।

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