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उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने विद्युत उत्पादन जलकर अधिकतम 2012 की चुनौती देती जल विद्युत उत्पादन कंपनियों की विशेष याचिका पर सुनवाई की 

रिपोर्टर गुड्डू सिंह ठठोला

 नैनीताल। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने विद्युत उत्पादन जल कर अधिनियम 2012 को चुनौती देती जल विद्युत उत्पादन कम्पनियों की विशेष याचिका की सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि खंडपीठ इस अधिनियम को लेकर एकमत नहीं है, और याचिका खारिज मानी जाए। ऐसी स्थिति में कोई अन्य न्यायाधीश इस मामले कि सुनवाई करेंगे। 

    मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी की खण्डपीठ ने हाइड्रो प्रोजेक्ट संबंधी दर्जनों याचिकाओं को क्लब कर पिछले दिनों रिजर्व कर दिया था, जिसे बुधवार को आदेश के रूप में पारित किया।

खंडपीठ ने इस अधिनियम को वैध मानते हुए जल विद्युत कम्पनियों की विशेष अपीलों को खारिज करते हुए जल कर अधिनियम को सही ठहराया है।

जबकि न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी ने इसे राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर मानते हुए जल विद्युत उत्पादन कम्पनियों की विशेष अपील स्वीकार की है और एकलपीठ के 12 फरवरी 2021 को अधिनियम के पक्ष में दिए फैसले को निरस्त कर दिया।

खण्डपीठ के इस मामले में एकमत नहीं होने पर अब यह मामला सुनवाई के लिये एक अन्य न्यायधीश के समक्ष भेजा जाएगा ।

    मामले के अनुसार 12 फरवरी 2021 को न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकलपीठ ने राज्य सरकार के जल उत्पादन पर जल कर लागू करने के अधिनियम को सही ठहराते हुए जल उत्पादन कम्पनियों द्वारा दायर इस अधिनियम को चुनौती देती याचिकाओं को खारिज कर दिया था ।

एकलपीठ के इस आदेश को हाइड्रोपावर कम्पनियों ने विशेष अपील से खण्डपीठ में चुनौती दी। 

     अधिनियम के अनुसार राज्य बनने के बाद उत्तराखण्ड सरकार ने राज्य की नदियों में जल विद्युत परियोजनाएं लगाए जाने के लिए विभिन्न कम्पनियों को आमंत्रित किया था और उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश राज्य और जल विद्युत कम्पनियों के मध्य करार हुआ।

जिसमें तय हुआ कि कुल उत्पादन के 12 फीसदी बिजली उत्तराखण्ड को निःशुल्क दी जाएगी, जबकि शेष बिजली उत्तर प्रदेश को बेची जाएगी। लेकिन वर्ष 2012 में उत्तराखंड सरकार ने वाटर टैक्स ऑन इलैक्ट्रिसिटी जनरेशन एक्ट बनाकर जल विद्युत कम्पनियों पर वायर की क्षमतानुसार 2 से 10 पैंसा प्रति यूनिट वाटर टैक्स लगा दिया।

जिससे इन कम्पनियों में करोड़ों रुपये के देनदारी हो गई। जिसे अलकनन्दा पावर प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड, टी.एच.डी.सी., एन.एच.पी.सी., स्वाति पावर प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड, भिलंगना हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट, जय प्रकाश पावर वेंचर प्राइवेट लिमिटेड आदि ने चुनौती दी थी।

एकलपीठ ने इनकी याचिकाओ को खारिज करते हुए कहा कि विधायिका को इस तरह का एक्ट बनाने का अधिकार है। यह टैक्स पानी के उपयोग पर नहीं बल्कि पानी से विद्युत उत्पादन पर है, जो संवैधानिक दायरे के भीतर बनाया गया है ।

      मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी ने अपनी सेवानिवृत्ति से एक दिन पूर्व मामले में फैसला देते हुए इस अधिनियम को वैध ठहराया है। मुख्य न्यायधीश ने कहा कि जल कर की दरें तय करने के लिए अधिनियम की धारा 17 के तहत राज्य को प्रदत्त शक्ति को चुनौती नहीं दी जा सकती।

       जबकि न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी ने माना कि अधिनियम बिजली के उत्पादन पर कर लगाता है।

 जिसके लिये राज्य विधानमंडल सक्षम नहीं है और यह अधिनियम संविधान के दायरे से बाहर है। अधिनियम की धारा 17 राज्य सरकार द्वारा दरें तय करने के लिए शक्तियों का अत्यधिक प्रत्यायोजन करती है।

उन्होंने अधिनियम की धारा 17 को शून्य माना है। इन तथ्यों के आधार पर उन्होंने जल विद्युत कम्पनियों की अपीलें स्वीकार करते हुए एकलपीठ के आदेश को खारिज कर दिया है ।

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