महिलाओं द्वारा पुरुषों का उत्पीड़न का मामला तेजी से बढ़ा
हल्द्वानी के महिला सेल के आंकड़ों की मानें तो सात शिकायतों में से दो मामले जिनमें पुरुष पीड़ित
पुरुषों के उत्पीड़न के लिए ऐसा कोई फोरम नहीं जहां वे अपनी व्यथा खुलकर व्यक्त कर सकें
समाज में महिलाओं के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के लिए कई सशक्त कानून बनाए गए हैं. इनसे महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों पर लगाम लगाई जा रही है, लेकिन दूसरी तरफ पुरुषों के उत्पीड़न का मुद्दा अब भी गंभीर अनदेखी का शिकार है।
बेंगलुरु में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या के बाद इस मुद्दे पर देशभर में बहस छिड़ गई है।
कड़े कानूनों के चलते महिला उत्पीड़न के मामलों में कमी आई है, लेकिन कई बार इन कानूनों का दुरुपयोग भी देखने को मिलता है. महिलाओं द्वारा इन कानूनों का इस्तेमाल पुरुषों के खिलाफ हथियार के तौर पर किया जाने लगा है।
दुर्भाग्यवश, पुरुषों के उत्पीड़न के लिए ऐसा कोई फोरम मौजूद नहीं है, जहां वे अपनी व्यथा खुलकर व्यक्त कर सकें. नवंबर 2024 तक कुमाऊं के 6 जिलों में 3078 शिकायतें दर्ज हुईं।
इनमें 3018 मामलों का निस्तारण हो चुका है, लेकिन 60 शिकायतें अब भी लंबित हैं. महिला सेल में दर्ज शिकायतों के आंकड़े बताते हैं कि नैनीताल जिले में सबसे अधिक 1411 शिकायतें दर्ज हुईं, जिनमें से 1393 का निस्तारण हो चुका है.
महिलाओं द्वारा पुरुषों का उत्पीड़न का मामला भी तेजी से बढ़ा है
इन शिकायतों में पुरुषों द्वारा महिला उत्पीड़न की घटनाओं का उल्लेख अधिक होता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि महिलाओं द्वारा पुरुषों का उत्पीड़न भी तेजी से बढ़ रहा है।
ऐच्छिक ब्यूरो में काउंसलिंग करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि पुरुष अक्सर अपने उत्पीड़न की बात खुलकर कहने में झिझकते हैं. समाज में बनी इस धारणा के कारण कि महिलाएं ही पीड़ित होती हैं, पुरुषों की शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जाता।
वरिष्ठ मनोविज्ञानी डॉ. युवराज पंत का कहना है, “महिलाओं की प्रमुख शिकायतें अक्सर पुरुषों के नशे में हिंसक होने, विवाहेत्तर संबंध रखने, या परिवार की उपेक्षा करने से जुड़ी होती हैं. इन पर कार्रवाई होती है, लेकिन पुरुषों की ऐसी शिकायतों को उतनी तवज्जो नहीं मिलती. नतीजतन, पुरुष हताश और निराश हो जाते हैं।
महिला हेल्पलाइन और महिला ऐच्छिक ब्यूरो जैसे नामों के कारण पुरुष पीड़ित यह समझ ही नहीं पाते कि उनकी भी शिकायतें सुनी जा सकती हैं. ऐसे केंद्रों पर जब उन्हें महिला की शिकायत के आधार पर बुलाया जाता है, तो वे सशंकित रहते हैं. विशेषज्ञों का सुझाव है कि इन केंद्रों का नाम “परिवार समाधान केंद्र” जैसा रखा जाना चाहिए, ताकि पुरुष और महिलाएं समान रूप से अपनी समस्याएं खुलकर साझा कर सकें।
पुरुष उत्पीड़न का सीधा असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है. कई बार यह हताशा उन्हें आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर कर देती है. बेंगलुरु के अतुल सुभाष का मामला इसका ताजा उदाहरण है. अतुल ने अपने जीवन को समाप्त कर देशभर में इस मुद्दे पर बहस छेड़ दी है।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि पुरुषों को भी जागरूक करने और उनकी मदद के लिए एक सशक्त प्रणाली की आवश्यकता है. डॉ. युवराज पंत बताते हैं, “पुरुष उत्पीड़न के मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. यह जरूरी है कि उनके लिए ऐसे मंच बनाए जाएं, जहां वे अपनी समस्याओं को खुलकर साझा कर सकें।
यह सच है कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कड़े कानून होने चाहिए, लेकिन साथ ही यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि इन कानूनों का दुरुपयोग न हो. पुरुष और महिलाओं के बीच उत्पीड़न के मामलों में संतुलन बनाना बेहद जरूरी है।