चंदा लेकर हुआ अंतिम संस्कार
नई दिल्ली। एक पुरानी कहावत है कि पूत कपूत तो का धन संचय, पूत सपूत तो का धन संचय, ये सच कर देने वाली कहावत इस समय एक कीड़े की तरह फैल हो रही है। क्योकि इस मार्डन भरे जमाने में परिवार के साथ कोई नही रहना चाहता है।
फिर चाहें अपने मां-बाप ही क्यो ना हो। संतान अपने स्वार्थ के चलते मां बाप के प्यार को भी दरकिनार करने में कोई कसर नही छोड़ रही है।
जिसका जीता जागता उदाहरण आप वृद्धाश्रम में रह रहे लोगो के बीच देख सकते हैं।
ऐसा ही दिल दहला देने वाला मामला वाराणसी में देखने को मिला है। जिसमें पद्मश्री से सम्मानित आध्यात्मिक साहित्यकार श्रीनाथ खंडेलवाल भले ही 80 करोड़ संम्पत्ति के मालिक रहे है लेकिन इसके बाद भी बेटे बच्चों ने उन्हें वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर कर दिया।
80 वर्ष की आयु में उनकी वृद्धाश्रम में मौत हो गई। हद तो तब हुई जब अपने पिता के आखिरी दर्शन करने के लिए और उन्हें कंधा देने के लिए उनका कोई भी परिजन उनके पास नहीं पहुंचा।
2023 में पद्मश्री से सम्मानित
काशी के रहने वाले श्रीनाथ खंडेलवाल ने सौ से अधिक किताबें लिखी हैं। जिसके चलते उन्हें 2023 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
परिवार में उनके दो बेटे और एक बेटी है। जिसमें उनका बेटा बिजनेसमैन है और बेटी सुप्रीम कोर्ट में वकील है। वह साहित्यकार होने के साथ एक आध्यात्मिक पुरुष भी थे।
बेटे बेटी ने हड़प ली सारी जायजाद
श्रीनाथ खंडेलवाल के पास करोड़ों की सम्पत्ति थी। दिन रात वो अपने साहित्य और अध्यात्म में डूबे रहते था।
इसी बात का फायदा उठा कर उनके बेटे और बेटी ने उनकी सारी जायजाद हड़पकर उनको बीमार अवस्था मे बेसहारा सड़क पर छोड़ दिया।
इसके बाद समाज सेवी लोग उन्हें काशी कुष्ठ वृद्धा आश्रम मे ले आए। जहां उनकी निशुल्क सेवा होती रही और वो काफी खुश थे लेकिन एक बार भी कोई परिजन वहां उनका हाल लेने नहीं आया।
वृद्ध आश्रम में ही उनका स्वास्थ्य बिगड़ने के बाद उन्हें आईसीयू में एडमिट किया गया और अंत में वो दुनिया को अलविदा कह गए।
सबसे बड़ी विडंबना तो यह थी श्रीनाथ खंडेलवाल के मृत्यु की खबर जब उनके बच्चों को दी गई व्यस्तता का हवाला देकर बेटों ने अंतिम दर्शन तक करने से इनकार कर दिया, और बेटी ने भी मुंह फेर लिया।
अंत में समाजसेवी अमन ने चंदा इकट्ठा कर श्रीनाथ खंडेलवाल का पूरे विधि विधान से अंतिम संस्कार किया।