हल्द्वानी। कुमाऊं में होली का त्योहार एक अनूठी सांस्कृतिक परंपरा के रूप में मनाया जाता है। यहां की पारंपरिक खड़ी होली पुरुषों द्वारा गाई जाती है, जिसमें शास्त्रीय रागों और ढोल-मंजीरों की थाप पर होली के गीत गाए जाते हैं।
इन दिनों गांव-गांव में इस अनूठे अंदाज की होली की धूम देखने को मिल रही है। खड़ी होली, बैठकी होली में पुरुष पारंपरिक वेशभूषा में सज-धज कर एक स्थान पर खड़े होकर समूह में होली गाते हैं।
यह आयोजन रंगों के साथ-साथ संगीत और भक्ति से सराबोर होता है। ऐसा माना जाता है कि कुमाऊं में खड़ी होली की परंपरा चंद राजाओं के शासनकाल से चली आ रही है। यह एक राजसी परंपरा थी, जो धीरे-धीरे आम जनता तक पहुंची और आज पूरे कुमाऊं की पहचान बन चुकी है।
पहले इसमें बुजुर्गों की भागीदारी अधिक होती थी, लेकिन अब युवाओं का भी इसमें खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। सोशल मीडिया और आधुनिक तकनीक के माध्यम से युवा इस सांस्कृतिक धरोहर को और अधिक लोकप्रिय बना रहे हैं।
होली सिर्फ रंगों का उत्सव नहीं, बल्कि आपसी मेलजोल और भाईचारे को भी बढ़ावा देती है। इस दौरान लोग एक-दूसरे के घर जाकर मिलते हैं और सामूहिक भोज का आयोजन भी किया जाता है।
जैसे-जैसे होली का दिन नजदीक आ रहा है, कुमाऊं के गांवों, चौक-चौराहों और मंदिर प्रांगणों में होलीगायकों की टोलियां गूंजने लगी हैं। यह उत्सव रंगों और संगीत के साथ-साथ कुमाऊं की सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखने का संदेश भी देता है।