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नैनीताल। कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल में “हिमालय की भू-गतिकीय उत्क्रांति: क्रस्टल संरचना, जलवायु, संसाधन एवं आपदा” विषय पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन शुभारम्भ कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल के भूविज्ञान विभाग और जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया, बेंगलुरु के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (GEH–2025) का शुभारम्भ विश्वविद्यालय के हरमिटेज भवन स्थित देवदार सभागार में हुआ।

जिसमें देश भर के साथ इटली, अमेरिका, नेपाल और भारत से आए प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं एवं विद्वानों ने भाग लिया। 

 इस अवसर पर कुलपति प्रो. दीवान एस रावत ने अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए सम्मेलन के आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त की और भूविज्ञान विभाग की शोध एवं नवाचार गतिविधियों की सराहना की।

उन्होंने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन वैज्ञानिक सहयोग, नवाचार और संवाद का एक सशक्त मंच बनेगा, जो हिमालयी पर्यावरण एवं आपदा न्यूनीकरण के क्षेत्र में ठोस दिशा प्रदान करेगा।

डॉ. विनीत कुमार गहलोत डायरेक्टर, वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी ने हिमालयी भू-गतिकी एवं जलवायु परिवर्तनशीलताओं के परस्पर संबंधों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिमालय का पारिस्थितिक तंत्र जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यंत संवेदनशील है और इस दिशा में निरंतर अनुसंधान की आवश्यकता है।

बात करें उत्तराखंड की कई क्षेत्र जनसंख्या के घनत्व के मुताबिक अत्यंत सवेदनशील है। क्योंकि पिछले 100 वर्षों में कोई बड़ा भूकंप इस क्षेत्र में नहीं आया है लिहाजा इस दृष्टिकोण से इस क्षेत्र में भूकंप आने की संभावना है भी बढ़ जाती है।

 निरंतर चल रहे विकास कार्य के मध्य नजर आवश्यकता है कि विकास कार्य को करने के लिए सुव्यवस्थित वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग करते हुए किया जाना चाहिए ताकि संवेदनशील क्षेत्र में और अधिक संवेदनशीलता नहीं बढ़ सके।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. हर्ष के. गुप्ता, प्रख्यात भूवैज्ञानिक एवं भूकंप विशेषज्ञ, ने अपने प्रेरक उद्घाटन व्याख्यान में हिमालयी क्षेत्र में भूकंपों की प्रवृत्तियों, उनकी तीव्रता और संभावित खतरों पर विस्तृत प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा कि “हमें भूकंपों के साथ जीना सीखना होगा।” प्रो. गुप्ता ने हिमालय से संबंधित भावी शोध के लिए पाँच प्रमुख विषय सुझाए और प्रस्ताव रखा कि इन विषयों पर एक समग्र शोध-संकलन तैयार कर फरवरी–मार्च 2026 तक एक विशेष अंक के रूप में प्रकाशित किया जाए।

सम्मेलन का उद्देश्य हिमालय की जटिल भू-गतिकीय संरचना, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और आपदा प्रबंधन से जुड़ी समसामयिक चुनौतियों पर गहन वैज्ञानिक विमर्श को प्रोत्साहित करना है।

अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन वैज्ञानिक सहयोग, नवाचार और संवाद का एक सशक्त मंच बनेगा, जो हिमालयी पर्यावरण एवं आपदा न्यूनीकरण के क्षेत्र में ठोस दिशा प्रदान करेगा।

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