एशिया में तीसरा सुपरपावर बना भारत
एशिया पावर इंडेक्स-2024 में खुलासा हुआ है, कि भारत एशिया में तीसरा सबसे शक्तिशाली देश बन गया है, और अब दुनिया सिर्फ अमेरिका और एशिया में चीन से पीछे है।
एशिया में बदलता शक्ति संतुलन
ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक लोवी इंस्टीट्यूट ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है।
इस वार्षिक रिपोर्ट में इकोनॉमी, मिलिट्री, डिप्लोमेसी और अन्य क्षमताओं को आधार बनाकर एशिया के 27 देशों का मूल्यांकन किया गया है। इस रिपोर्ट से ये पत चलता है, कि पिछले छह वर्षों में एशिया में शक्ति संतुलन कैसे विकसित हुआ है, जिसमें रूस और जापान जैसे शक्तिशाली देशों से आगे निकलकर भारत के डेवलपमेंट को दिखाया गया है।
लोवी इंस्टीट्यूट के विश्लेषण के मुताबिक, संयुक्त राज्य अमेरिका एशिया में प्रभाव रखने के मामले में इस लिस्ट में टॉप पर मौजूद है, भले ही उसे चीन से कड़ी सैन्य प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा हो। चीन की शक्ति, हालांकि काफी बढ़ी है, लेकिन ऐसा लगता है, कि उसकी शक्ति स्थिर हो गई है, क्योंकि अब उसकी आर्थिक वृद्धि उतनी तेज नहीं हो रही है, जितनी कि कुछ विश्लेषकों ने अनुमान लगाया था। इसके कारण चीन ने रैंकिंग में दूसरा स्थान हासिल किया है, जो उसके क्षेत्रीय प्रभुत्व में नाटकीय वृद्धि या गिरावट के बजाय उसकी स्थिरता के चरण को दर्शाता है।
भारत का तीसरे स्थान पर पहुंचना एक महत्वपूर्ण बदलाव है, जिसने समग्र शक्ति के मामले में पहली बार जापान को पीछे छोड़ दिया है। यह उपलब्धि भारत के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित करती है और एशिया की अग्रणी शक्तियों के पदानुक्रम में और भी ऊपर चढ़ने की इसकी अथाह क्षमता का संकेत देती है।
रिपोर्ट में अमेरिका को 81.7 प्वाइंट, चीन को 72.7 प्वाइंट और जापान को 38.9 प्वाइंट दिए गये हैं। जबकि भारत को 39.1 प्वाइंट के साथ तीसरे स्थान पर रखा गया है। वहीं, इस लिस्ट में 14.6 प्वाइंट के साथ पाकिस्तान को 16वें नंबर पर रखा गया है।
रिपोर्ट बताती है कि भारत की वर्तमान स्थिति प्रभावशाली है, लेकिन असली प्रभाव तक पहुंचने के लिए इसकी वास्तविक क्षमता का अभी भी कम उपयोग किया गया है। इसके विपरीत, रैंकिंग में जापान की गिरावट का कारण इसकी आर्थिक बाधाएं और दक्षिण कोरिया, चीन और ताइवान जैसे अन्य एशियाई मैन्युफैक्चरिंग दिग्गजों से उसके होने वाले मुकाबले का दबाव है।
हालांकि आर्थिक मंदी के बावजूद, जापान ने अपनी रक्षा और सुरक्षा भूमिकाओं को आगे बढ़ाकर, संयुक्त राज्य अमेरिका और एशिया में अन्य सहयोगियों के साथ संबंधों को मजबूत करके अपना कद बढ़ाया है। मुख्य रूप से एक आर्थिक और सांस्कृतिक नेता के रूप में देखे जाने से लेकर क्षेत्रीय सुरक्षा में एक सक्रिय भागीदार के रूप में देखा जाने वाला यह विकास, जापान के भू-राजनीतिक स्थिति के प्रति दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण मोड़ को उजागर करता है।
एशिया में मिलिट्री क्षमता की गतिशीलता विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच तीव्र प्रतिद्वंद्विता को रेखांकित करती है। चीन सैन्य अंतर को लगातार काम कर रहा है, खासकर क्षेत्र में संभावित संघर्षों में सेना को जुटाने और बनाए रखने की अपनी क्षमता में लगातार इजाफा कर रहा है।
फिर भी, अपनी सीमाओं के बाहर पावर प्रोजेक्शन की इसकी क्षमता सीमित मानी जाती है। लेकिन इससे ये भी पता चलता है, कि संयुक्त राज्य अमेरिका की समग्र सैन्य शक्ति से मेल खाए बिना भी, चीन अभी भी पूर्वी एशिया में अपने रणनीतिक लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ा सकता है।
एशिया पावर इंडेक्स क्षेत्र के राजनीतिक माहौल की मल्टी-डायमेंशनल तस्वीर पेश करता है, जिसमें स्थिर लेकिन महत्वाकांक्षी चीन से चुनौतियों के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपना शीर्ष स्थान बनाए रखा है।
भारत के उदय और जापान द्वारा अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं के पुनर्मूल्यांकन सहित बदलती शक्ति गतिशीलता, बदलते गठबंधनों, आर्थिक प्रतिद्वंद्विता और मिलिट्री एडवांसमेंट का संकेत देती है। ये घटनाक्रम क्षेत्रीय और वैश्विक भू-राजनीति दोनों के भविष्य के लिए गहरे निहितार्थ रखते हैं, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन का द्विध्रुवीय प्रभुत्व एशिया में शक्ति के जटिल अंतर्संबंध के लिए मंच तैयार करता है।
लोवी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट एशिया में शक्ति की उभरती रूपरेखा को उजागर करती है, जहां संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन प्रमुख ताकतें बनी हुई हैं, लेकिन भारत एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में उभर चुका है, जो आगे जाकर अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल करने वाला है।
जो उसे एक महत्वपूर्ण शक्ति बनाएगा। जैसे-जैसे वक्त बदलेगा, आर्थिक कौशल, सैन्य शक्ति और कूटनीतिक रणनीतियों का परस्पर प्रभाव क्षेत्र के भविष्य को आकार देना जारी रखेगा, जो वैश्विक भू-राजनीति के संदर्भ में इन बदलती गतिशीलता को समझने के महत्व को उजागर करता है।