नैनीताल में कुमाऊनी रामलीला, मल्लीताल में 100 साल पहले से रामलीला की शुरुआत हुई थी
रिपोर्टर गुड्डू सिंह ठठोला
नैनीताल। कुमाऊनी रामलीला महोत्सव चल रहा है अगर हम बात करें तो मल्लीताल राम सेवक सभा रामलीला की तो 100 साल पहले से रामलीला की शुरुआत हो चुकी थी और दूर-दूर से लोग देखने के लिए आते थे।
अब भी रामलीला देखने के लिए लोगों पर जोस कम नहीं हुआ। हजारों की संख्या में लोग रामलीला देखने के लिए आते हैं। रामसेवक सभा की रामलीला की बात ही कुछ और है।
अभिनेता स्वर्गीय निर्मल पांडे के भाई मिथिलेश पांडे 40 वर्षों से मेघनाथ का किरदार निभा रहे हैं इसके साथ ही बच्चों को भी मिथिलेश पांडे तालीम देते हैं।
मिथिलेश पांडे ने कहा की लगभग 40 साल से ऊपर हो गए।
मुझे मेघनाथ का पाठ खेलते हुए और करीब 80-83 के लगभग में खेल रहा हूं हर बार कोशिश रहती की कुछ नया करू और साथ ही साथ एक नाटक वासुकि की विजय किसी परिपेक्ष में करते हैं।
इंद्र की स्वर्ग लोक पर विजय दिखाई जाती है कैसे उसने सुलोचना को प्राप्त किया और आनंद भी आता है इतने समय से इस पाठ करते करते ऐसा लगता है मुझे इस किरदार लगता हैं।
मैं मिथिलेश पांडे नहीं मेघनाद ही हूँ। पहले की रामलीला में जो बचपन से सुनते आ रहे हैं। राग रागिनियो का समावेश उस वक्त था। आज ही वही है। इसमें कोई फर्क नहीं आया है।
पहले के मुकाबले में संसाधन हमारे पास बहुत कम थे। आजकल हमारे पास संसाधन बहुत हो गए। तो अच्छे वस्त्र और जो साज संजा हैं अच्छे धनुष बाढ़ पर जो हमारी माइक व्यवस्था है।
उसमे बढ़ोतरी हुई है कम नहीं हुई है। कुछ नए शेरो शायरियां कलाकार अपनी ओर से करते हैं। जिससे अच्छा ही लगता है।
मेघनाद लक्ष्मण की तरह 12 वर्षों तक नींद नारी और उसका त्याग किया हो उसको तो नहीं मार सकता युद्ध मत करना लक्ष्मण ऐसी कैरेक्टर थे। नींद नारी का और उसका त्याग किया था।
वह आचरण में राम की सेवा की तो वह हमें सिखाता है कि अगर अच्छा चरित्र इंसान के पास हैं।तो किसी पर भी विजय पा सकता है तो उसने इंद्र को हराने वाले मेघनाद का भी पतंग कर दिया अभिनेता स्व निर्मल पांडे इसी मंच से जुड़े और यहीं से उनकी अभिनय की शुरुआत हुई ।
लगभग 9- 10 की उम्र से हम दोनों भाइयों ने रामसेवक सभा के मंच में काम किया बंदर और राक्षस के पात्र हम दोनों भाइयो ने खेले लगभग आज 50 से ज्यादा साल हमको रामलीला में मंचन करते हो गए।
निर्मल पांडे ने भी इसी मंच से शुरुआत की और उन्होंने ने उस मुकाम तक पहुंचाया। और दूसरा पारसी थिएटर की तर्ज पर श्रवण कुमार नाटक, नारद मोह और वासुकी विजय नाटक किया जाता है। निर्मल पांडे ने भी यहीं से अपनी शुरुआत की ।