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हल्द्वानी। लोकसभा चुनाव से पहले उत्तराखंड में मूल निवास का मुद्दा एक बार फिर जोर पकड़ने लगा है। उत्तराखंड के तमाम संगठनों ने 24 दिसंबर को देहरादून में मूल निवास स्वाभिमान रैली बुलाई है।

हल्द्वानी में मूल निवास पत्र 1950 को लेकर बुधपार्क में तमाम संगठनों से जुड़े लोगों ने खुली चर्चा की। इस चर्चा में यह तय हुआ कि किस प्रकार से देहरादून में सरकार का घेराव किया जाए।

बैठक में वक्ताओं ने कहा कि प्रदेश के बाहरी व्यक्तियों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार नियमों के साथ छेड़छाड़ कर रही है। वक्ताओं ने कहा कि राज्य की नौकरियों पर पहले उत्तराखंड वासियों का हक है लेकिन ऐसे लचर कानून की वजह से उत्तराखंड के बेरोजगार युवाओं का हक मारा जा रहा है।

वहीं 1950 मूल स्थाई निवास और भू-कानून को लेकर काफी लंबे समय से आंदोलन किया जा रहा है पर सरकार के कान में जूं नहीं रेंग रही। जिसके चलते आगामी 24 तारीख को देहरादून में इस मांग को पुरजोर तरीके से उठाया जाएगा।

आपको बता दें कि आंदोलनकारियों की सबसे बड़ी मांग मूल निवास को लेकर है। दरअसल उत्तराखंड में राज्य गठन के समय यहां रह रहे लोगों को स्थायी निवासी का दर्जा प्राप्त है।

सरकार मूल निवास प्रमाण पत्र जारी करने के बजाए स्थायी निवास प्रमाण पत्र जारी करती है। इससे स्थानीय लोगों को हक हकूकों पर मार पड़ रही है। बाहरी प्रदेशों का कोई भी व्यक्ति आसानी से उत्तराखंड का स्थायी निवासी बन जा रहा है और राज्य की तमाम योजनाओं और नौकरियों का लाभ ले रहा है।

जबकि संविधान में साफ कहा गया है कि वर्ष 1950 में जो व्यक्त जिस राज्य में रह रहा हो, वो औऱ उसकी पीढ़ियां उसी राज्य की मूल निवासी होंगी।

लेकिन उत्तराखंड में किसी दूसरे राज्य के मूल निवासी लोग भी आसानी से स्थायी निवासी बन रहे हैं औऱ तमाम योजनाओं का लाभ ले रहे हैं।

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