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नैनीताल राज्य अतिथि गृह में उत्तराखंड उपनल संविदा कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों ने की बैठक 

रिपोर्टर गुड्डू सिंह ठठोला

नैनीताल। राज्य अतिथि गृह नैनीताल में आज उत्तराखण्ड उपनल संविदा कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों द्वारा वर्षों से राजकीय विभागों/निगमों इत्यादि में कार्यरत कर्मचारियों के संबंध में प्रेसवार्ता कर सरकार से उत्तराखण्ड के विभिन्न विभागों में कार्यरत उपनल संविदा कर्मचारियों को नियमित करने की मांग की है।

नैनीताल कल्ब में पत्रकार वार्ता के दौरान उपनल संविदा कर्मचारी संघ ने कहा 2018 में उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने उनको नियमित करने का आदेश दिया था जिसके खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट गई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी उनके हक में ही फैसला दिया।

कर्मचारी संघ का कहना है कि पिछले कई सालों से वो अलग अलग विभागों में काम कर रहे हैं। लेकिन सरकार के अधिकारी सरकार को गुमराह कर रहे हैं। कर्मचारी संघ ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा सभी कर्मचारियों ने लोकसभा चुनाव हो या फिर कोरोना जैसी बिमारी सभी में वे अपनी सेवाएं देते आए है।

जिसका फायदा तक नहीं दिया ऐसे में सरकार के पास अच्छा मौका है कि इन 21 हजार कर्मचारियों को नियमित करे नहीं तो वो अवमानना याचिका दाखिल करेंगे उन्होंने यह भी कहाराज्य गठन के उपरान्त वर्ष 2004 में राज्य सरकार द्वारा उत्तराखण्ड पूर्व सैनिक कल्याण निगम (उपनल) का गठन हुआ।

उपनल के गठन के उपरान्त विभिन्न विभाग/निगमों द्वारा हजारों उपनल कर्मचारियों को नियुक्त किया गया। इसके अतिरिक्त कई ऐसे भी कर्मचारी है जो उपनल गठन से पूर्व किसी अन्य एजेंसी से विभागों/निगमों इत्यादि में कार्यरत थे उनको वर्ष 2004 के बाद उपनल में समायोजित कर दिया गया।

उपनल कर्मचारी अपने जीवन का अमूल्य समय राज्य सरकार के विभागों/निगमों इत्यादि में अपनी सेवा देने के बाद आज अधिकतर उपनल कर्मचारियों की उम्र 40 से 50 वर्ष तक हो गयी है तथा जिनको उपनल से सेवा देते हुए 10, 15, 20 वर्ष तक हो गए है।

इतना लम्बा समय देने के बाद भी उपनल कर्मचारियों का कोई भविष्य नहीं है और न ही उनको इस महंगाई के दौर में अपना जीवन यापन करने लायक वेतन भी नहीं दिया जाता है।
वर्ष 2018 में माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा कुन्दन सिंह के पत्र को जनहित याचिका मानकर एक ऐतिहासिक निर्णय दिया गया जिसमें कहा गया कि उपनल वास्तव में एक छदम धुम्र आवरण है और वास्तिविक सेवायोजक राज्य सरकार है।

ऊराज्य सरकार अपने कर्मचारियों को समुचित वेतन व सेवा सुरक्षा दिए बगैर इस प्रकार का छदम धुम्र आवरण का प्रयोग कर उपनल के माध्यम से नियोजन दिखाना जबकि न तो उपनल के पास कोई लाईसेन्स संविदा श्रम उन्मूलन अधिनियम के अन्तर्गत है न हीं राज्य सरकार के विभिन्न विभागों जिनमें उपनल के माध्यम से कर्मचारी कार्य कर रहे है के पास उक्त अधिनियम के तहत कोई प्रमाण पत्र है।

इसी प्रकार माननीय न्यायालय में उपनल के माध्यम से नियोजित कर्मचारियों के वेतन से जीएसटी की कटौती को भी अवैध माना और सभी उपनल कर्मचारियों को प्रचलित नियमों के तहत नियमितकरण करने का आदेश राज्य सरकार को दिया व नियमितिकरण तक नियमित कर्मचारी की भाँति न्यूनतम वेतनमान व डीए का भुगतान करने का आदेश दिया।

उपनल कर्मचारियों के वेतन से जीएसटी की कटौती पर भी रोक लगा दी परन्तु राज्य सरकार के सचिवों की हठधर्मिता के कारण उपरोक्त मामले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गयी और भारी मात्रा में लोकधन का व्यय किया गया।

 अन्ततः माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा राज्य सरकार की विशेष अनुमति याचिका निरस्त कर दी गयी। यह एक अत्यन्त गंभीर चिन्तन का विषय है कि वर्ष 2016 मे स्वंय शासन द्वारा शासनादेश जारी कर उपनल के द्वारा नियोजित कार्मिकों द्वारा धारित पदों को सीधी भर्ती के पदों को भरे जाने पर प्रतिबन्ध लगाया गया व ऐसी दशा में कार्मिक विभाग की पुर्वानुमति आवश्यक मानी गयी।

परन्तु स्वंय शासन के कथित सचिवों द्वारा उपरोक्त शासनादेशों की अवेहलना कर सीधी भर्ती की कार्यवाही की गयी और ऐसी भर्ती के फलस्वरूप 10 वर्षों से भी अधिक वर्षों से कार्यरत कई उपनल कर्मचारियों को सीधी भर्ती हेतु अधिकतम आयु सीमा को पार कर चुके थे को सेवा से हटा दिया गया।

उल्लेखनीय है कि शासन के उपरोक्त सचिवों द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ स्टील अर्थोरिटी आफ इण्डिया बनाम नेशनल वाटर फ्रंट यूनियन के निर्णय व उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम में सेवायोजक की परिभाषा का भी कोई संज्ञान नहीं लिया गया और न ही लिया जा रहा है और न ही आदर्श स्थाई आदेशों का कोई संज्ञान लिया जा रहा है।

जो कि प्रावधानित करता है कि कोई भी कर्मकार जो निरन्तर 240 दिन से अधिक की सेवा कर लेता है वह स्थाई कर्मकार माना जायेगा। सचिवों की हठधर्मिता का परिणाम वादों की बहुल्यता व अनुचित श्रम व्यवहार एवं कर्मचारियों व श्रमिकों को बंधुवा श्रमिक मानकर उनका उत्पीड़न करने के रूप में परिलक्षित हो रहा है।

ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य के नीतिनिर्धारक सचिव उत्तराखण्ड के बेरोजगार नवयुवकों के प्रति कोई सहानुभूति नही रखते है और माननीय मुख्यमंत्री व मंत्रीगण को वित्तीय भार के नाम पर गुमराह कर न्यायालय के आदेशों को लागू करने में टाल-मटोल कर रहे है।

उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ द्वारा राज्य सरकार को समस्या का समाधान बताते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्ष 1971 में दिए गए न्याय निर्णय जय सिंह बनाम पंजाब सरकार में प्रतिपादित विधि के सिद्वान्तों जिसमें उपनल सदृश्य अस्थाई कर्मचारियों जो 10 वर्ष से अधिक की सेवा कर चुके हैं हेतु Diminshing Cadre कैडर सृजित कर ऐसे कर्मचारियों को एकमुश्त तौर पर उनके द्वारा सेवानिवृत्ति की आयु पूर्ण करने तक उन्हें नियमित कर्मचारी घोषित कर दिया जाय, का भी समाधान दिया।

परन्तु राज्य सरकार के अधिवक्ता द्वारा समय मांगने के बावजूद भी आजतक उपरोक्त संबंध में कोई सकारात्मक उत्तर उत्तराखण्ड शासन के नीतिनिर्धारक सचिवों की ओर से प्रस्तुत नहीं किया।

वहीं दूसरी ओर शासन के कथित नीतिनिर्धारक सचिवों के सलाह के अनुसार राज्य सरकार की ओर से उच्चतम न्यायालय में पुर्नविचार याचिका दायर करने की बात की गयी और यहीं नहीं सैनिक कल्याण मंत्री जो अब तक पुरजोर तौर पर उपनल कर्मचारियों के हितों का संरक्षण करने की बात करते थे।

उच्चतम न्यायालय का निर्णय आने के बाद कथित रूप से नियमितीकरण हेतु आरक्षण आदि का अनावश्यक प्रश्न उठाकर मामले को घुमाना चाहते है और वास्तव में उनके द्वारा कहा गया कथन केवल राज्य के कतिपय नीतिनिर्धारक सचिव जो अपने स्वार्थ के कारण उत्तराखण्ड के बेरोजगार युवकों को उनका अधिकार नहीं देना चाहते है, के द्वारा ऐसा कराया जाना प्रतीत होता है।

यहां हम आप पत्रकार बन्धुवों के माध्यम से माननीय मुख्यमंत्री महोदय व समस्त मंत्रीगणों को मानस की सुन्दर काण्ड की चौपाई का स्मरण कराना चाहते है कि जिसमें कहा गया कि-
सचिव, वैद्य, गुरू तीनी जो प्रिय बोले भय आस, राजधर्म तन तीनी कर होई बेगहीं नास।
ये शब्द अपने आप में सत्ता व शासन को आयना दिखाने हेतु पर्याप्त हैं।
अतः इस प्रेसवार्ता के माध्यम से हम माननीय मुख्यमंत्री महोदय व समस्त मंत्रीमण्डल से निवेदन करते हैं कि तत्काल माननीय न्यायालयों के आदेशों का सम्मान कर उपनल के माध्यम से नियोजित समस्त कर्मियों को नियमित कर्मचारी घोषित करने के साथ-साथ नियमित वेतनमान व महंगाई भत्ता व अन्य लाभ दिया जाय एवं माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा दिए गए निर्णय 12.11.2018 से लेकर आजतक जितने भी उपनल के माध्यम से कार्यरत कर्मचारियों को सेवा से हटाया गया है।

उन्हें सेवा में पुर्नस्थापित कर नियमितकरण व अन्य लाभ दिए जाय तथा करोनोकाल में जिन उपनल कर्मचारियों की मृत्यु हो गयी उनके परिवार के सदस्यों को नियमित रोजगार दिया जाय एवं समस्त कर्मचारियों के नियमीतिकरण करने तक उपनल के द्वारा नियोजित कर्मचारियों के द्वारा धारित पदों पर किसी प्रकार से कोई सीधी भर्ती से नियमित नियुक्ति न की जाय यदि की जा रही है तो उसे तत्काल रोका जाय।

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इस ज्वलंत समस्या का समाधान कर साथ ही उत्तराखण्ड राज्य के कर्मचारी बेरोजगार नवयुवकों के प्रति दूषित मानसिकता व उत्तराखण्ड विरोधी मानसिकता रखने वाले नौकरशाही में बड़े-बड़े पदों पर आसीन व्यक्तियों को तत्काल हटाया जाय ताकि उत्तराखण्ड राज्य के निर्माण में अपना सर्वस न्यौछावर करने वाले विशेषतः उपनल के माध्यम से कार्यरत कर्मचारी व श्रमिकों को न्याय मिल सके।

संघ द्वारा यह भी तय किया गया कि आगामी रणनीति के तहत माननीय प्रधानमंत्री जी व केन्द्रीय गृह मंत्री जी से मुलाकात कर राज्य में उपनल कर्मचारियों की दुदर्शा से अवगत कराया जायेगा व तद्नुसार आगामी रणनीति बनाई जायेगी।
प्रेस वार्ता में वरिष्ठ अधिवक्ता श्री एम०सी० पन्त जी, श्री रमेश शर्मा प्रदेश अध्यक्ष, श्री प्रमोद गुसाई प्रान्तीय महामंत्री, श्री मनोज जोशी सलाहकार, श्री मनोज गड़कोटी प्रदेश प्रवक्ता, श्री पूरन भट्ट वरिष्ठ उपाध्यक्ष, श्री गणेश गोस्वामी संरक्षक, श्री तेजा बिष्ट प्रदेश कोषाध्यक्ष, श्री विनोद सिंह बिष्ट, श्री योगेश भाटिया, श्री अनिल कोटियाल, श्री देवेन्द्र रतूड़ी, श्री राकेश जोशी प्रदीप सनवाल आदि मौजूद थे।

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