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सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने उत्तराखंड की UCC (समान नागरिक संहिता) के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने की मांग करते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि यूसीसी कोड के विभिन्न प्रावधान राज्य के निवासियों के मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण करते हैं और निजता के अधिकार और जीवन के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।

फिलहाल मामले की सुनवाई शुरू नहीं हुई है, इस मामले को अभी उच्च न्यायालय द्वारा सूचीबद्ध किया जाना है।

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय की अधिवक्ता और याचिकाकर्ता आरुषि गुप्ता ने यूसीसी कोड के भाग-1 विवाह और तलाक तथा भाग-3 लिव इन रिलेशनशिप के तहत प्रदान की गई विभिन्न धाराओं और संबंधित नियमों पर सवाल उठाए हैं और उन्हें असंवैधानिक करार दिया है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि यह कानून शादी-विवाह से संबंधित फैसला लेने और अपने साथी को चुनने में व्यक्तियों की स्वायत्तता के अधिकार को छीन लेता है।

याचिका में कहा गया है कि कानून के कुछ प्रावधान अल्पसंख्यक समुदायों के लिए भेदभावपूर्ण हैं। कोर्ट में याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे अधिवक्ता आयुष नेगी ने इस मामले में कहा, ‘कानून के कुछ प्रावधान मनमाने ढंग से तैयार किए गए हैं और मुसलमानों तथा उनकी सदियों पुरानी प्रथाओं के साथ भेदभाव करते हैं।’

नेगी ने बताया कि उन्होंने संहिता के कुछ प्रावधानों को ही चुनौती दी है, न कि कानून को पूरी तरह से रद्द करने की मांग की है। उन्होंने कहा, ‘याचिकाकर्ता ने यूसीसी कोड में ठीक ढंग से निपटाए गए मुद्दों जैसे भरण-पोषण, तलाक, महिला अधिकार और बाल विवाह की सराहना की है, क्योंकि यह महिलाओं को पुरुषों के बराबर लाता है।’

याचिका में उन निवासियों की परिभाषा पर भी सवाल उठाया गया है जिन पर कानून लागू होता है। याचिकाकर्ता के अनुसार, यह संहिता राज्य में एक वर्ष या उससे अधिक समय तक रहने वाले किसी भी व्यक्ति पर लागू होती है।

उनका कहना है कि निवासी की परिभाषा को अनुचित तरीके से बढ़ाया गया है ताकि यह कानून अन्य राज्यों के निवासियों पर भी लागू हो।

नेगी ने कहा, ‘हमने उस प्रावधान को भी चुनौती दी है जो एक व्यक्ति के नाबालिग होने की स्थिति में लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण पर रोक लगाता है।

यह मनमाना है, क्योंकि कानून 21 वर्ष की आयु के पुरुष और 18 वर्ष की आयु की महिला को विवाह करने की अनुमति देता है, जबकि 21 वर्ष से कम आयु की महिला को लिव-इनरिलेशनशिप में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है, क्योंकि संहिता इसकी अनुमति नहीं देती है।’

उत्तराखंड स्थित मुस्लिम संगठन मुस्लिम सेवा संगठन ने कहा कि वे भी हाई कोर्ट में यूसीसी के खिलाफ जनहित याचिका दायर करेंगे।

मुस्लिम सेवा संगठन के अध्यक्ष नईम कुरैशी ने कहा, ‘मैं अपने संगठन के अन्य सदस्यों के साथ उच्च न्यायालय में यूसीसी के खिलाफ जनहित याचिका दायर करूंगा।

उधर दिल्ली स्थित जमीयत उलेमा-ए-हिंद के हाफिज शाह नज़र ने कहा कि वे भी एक-दो दिन में यूसीसी के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे।

इससे पहले 27 जनवरी को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यूसीसी पोर्टल और नियमों को लॉन्च किया था।

जिसके तहत विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और विरासत से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों को सरल और मानकीकृत किया गया है।

उत्तराखंड के यूसीसी कानून में लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण को भी अनिवार्य बनाया गया है।

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