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देहरादून।  निजी स्कूल के शिक्षक  16 साल से बेसिक स्तर पर नौकरी कर रहे हैं। उनका वेतन इस वक्त बामुश्किल 22 हजार रुपये है। जबकि, सरकारी स्कूलों में तैनात उनके समकक्ष शिक्षक का वेतन इस वक्त 80 हजार रुपये तक पहुंच चुका है।

स्कूल प्रबंधन जिस रफ्तार से हर साल फीस बढ़ाता है, उनका वेतन बढ़ाने के बारे में क्यों नहीं सोचता? यह स्थिति तब है, जबकि सरकार आज से 18 वर्ष पूर्व निजी स्कूलों के शिक्षकों को भी समान वेतन के आदेश दे चुकी है।

 निजी स्कूलों के हजारों शिक्षकों का भी यही सवाल है। कुछेक स्कूलों को अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो बाकी जगह शिक्षक-कर्मचारियों के वेतन-भत्तों के लिए कोई ठोस नीति नहीं है। प्रबंधन अपने हिसाब से उनका वेतन तय करता है, और वो भी सरकारी से काफी कम होता है।

शिक्षकों ने सरकार से मांग की है कि यूपी के समान ही स्व-वित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय शुल्क विनियमन अधिनियम 2018 की तरह अधिनियम बनाने की जरूरत है। कई स्कूल अभिभावकों का शोषण कर रहे हैं। शिक्षक-कर्मचारियों को भी कम वेतन मिल रहा है। इस विषय को मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री के समक्ष रखा जाएगा।

महानिदेशक शिक्षा झरना कमठान कहतीं हैं कि वर्ष 2007 में मान्यता के मानक के लिए जारी आदेश को दिखवाया जाएगा। यह भी देखा जाएगा कि बाद में संशोधन तो नहीं किया गया?

सरकार से तय मानक का पालन कराना भी सुनिश्चित किया जाएगा। मानकों के उल्लंघन की छूट किसी को नहीं देंगे। इस आदेश की समीक्षा के बाद ही कुछ स्पष्ट कहा जा सकेगा।

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