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नवजात में पीलिया के लक्षण दिखने पर तुरंत कराएं इलाज

पीलिया से पीड़ित बच्चों को नया जीवन दे रहा मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी

फोटो थेरेपी की  होती है आवश्यकता

 चंपावत। नवजात में बढ़ते पीलिया के मामलों पर चिकित्सकों ने अभिभावकों को जागरूक रहने की सलाह दी है। नवजात में पीलिया के लक्षण दिखने पर तत्काल उसका उपचार कराने की सलाह दी है।

लोहाघाट से पीलिया पीड़ित बच्चों का उपचार कराकर लौटे अभिभावकों ने चिकित्सकों के प्रयासों की सराहना कर टीम का आभार जताया।

राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी की बाल रोग विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. रितु रखोलिया ने बताया कि कुमाऊं क्षेत्र से हल्द्वानी अस्पताल में पीलिया के उपचार के लिए बड़ी संख्या में बच्चे पहुंच रहे हैं।

डॉ. रितु रखोलिया बताया कि पैदा होने के उपरांत एक माह के बच्चों में पीलिया एक सामान्य प्रक्रिया है।

पीलिया नवजात शिशुओं में अधिक होता है, क्योंकि पीलिया हिमोग्लोबिन से बनता है।

उन्होंने बताया कि शिशुओं में हिमोग्लोबिन की मात्रा 16 ग्राम प्रति डेसीलीटर और वयस्कों में 12-14 ग्राम प्रति डेसीलीटर होती है।

यह डॉ. रखोलिया ने बताया कि पीलिया रक्त में बिलीरूबिन के जमाव के कारण होता है। बिलीरूबिन पीला पदार्थ है, जो शरीर में लाल रक्त कणिकाओं के टूटने से बनता है।

यदि बिलीरूबीन की मात्रा नौ माह से छोटे बच्चों के शरीर में 15 ग्राम प्रति डेसीलीटर से अधिक हो तो बच्चों के मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है।

बच्चों के सुनने की क्षमता और आंखों में असर पड़ने से वह विकलांग हो सकते हैं। ऐसे में बच्चों उपचार के लिए नीली लाइट एफोटो थेरेपी) और रक्त बदलने की जरूरत पड़ती है।

बच्चों में 90 दिन और वयस्कों में 120 दिन रहता है।

नवजात का लीवर भी वयस्कों की तुलना में कम सक्रिय होता है। कम दूध पीने वाले बच्चों में पीलिया तेजी से बढ़ता है, कम पीलिया लीवर की खराबी से नहीं होता है। और मूत्र भी पीला नहीं होता है। इसे शारीरिक पीलिया कहते हैं।

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