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उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ मंदिर हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। 3,583 मीटर ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर रहस्यों से भरा है। भगवान शिव का यह मंदिर पंच केदार नामक पांच मंदिरों में से एक है।

यह अपनी जटिल मूर्तियों और प्राचीन भारतीय वास्तुकला के लिए भी दुनिया में जाना जाता है।

केदारनाथ मंदिर कैसे बना, अनसुलझा है यह रहस्य

केदारनाथ की उत्पत्ति का रहस्य अनसुलझा विषय है। माना जाता है कि यह 1,200 साल से भी ज्यादा पुराना है। इसकी उत्पत्ति को लेकर कोई ठोस सबूत नहीं हैं। इसकी उत्पत्ति को लेकर कई तरह की कहानियां हैं। इनमें दो सबसे ज्यादा विश्वास की जाने वाली कहानी है, जिसमें से एक में कहा गया है कि मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था। वहीं, दूसरी कहानी के अनुसार इसे 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने बनवाया था।

ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर उस स्थान पर बनाया गया था जहां पांडव महाभारत की लड़ाई के बाद भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास कर रहे थे। कहा जाता है कि उनसे बचने के लिए भगवान शिव ने बैल का रूप धारण किया और धरती में धंस गए, जिसका कूबड़ केदारनाथ में प्रकट हुआ। आधुनिक समय में कार्बन-डेटिंग और अन्य वैज्ञानिक तरीके भी मंदिर के निर्माण के समय का पता नहीं लगा पाए हैं।

बिना सिमेंट पत्थरों को जोड़कर बनाया गया है केदारनाथ मंदिर

केदारनाथ मंदिर इंजीनियरिंग के लिए आश्चर्य है। इसे मुख्य रूप से हिमालय से लाए गए बड़े पत्थरों से बनाया गया है। इसमें पत्थरों को जोड़ने के लिए सीमेंट जैसे पदार्थ का इस्तेमाल नहीं हुआ है। पत्थरों को एक के ऊपर एक रखकर मंदिर बनाया गया है। इस डिजाइन के चलते मंदिर इतने साल से टिका हुआ है। इस मंदिर ने मौसम की चरम स्थितियों और भूकंपों को झेला है।

केदारनाथ मंदिर की संरचना इतनी मजबूत है कि यह इतिहास में आए कई भूकंपों, भारी बर्फबारी और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के बाद भी टिका रहा है। मंदिर की दीवारों पर जटिल नक्काशी की गई है। वास्तुकला की दृष्टि से मंदिर पारंपरिक हिंदू मंदिर के डिजाइन पर बना है। इसमें एक पिरामिडनुमा शिखर और एक गर्भगृह है। गर्भगृह में भगवान शिव की मुख्य मूर्ति स्थापित है।

2013 के उत्तराखंड बाढ़ में बच गया था केदारनाथ मंदिर

2013 में उत्तराखंड में भीषण बाढ़ आया था। इसके चलते बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई। बाढ़ ने अपने रास्ते में आने वाले बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया। इस दौरान भी केदारनाथ मंदिर को नुकसान नहीं हुआ। भीम शीला नामक एक बड़े पत्थर ने मंदिर की रक्षा की। इसके चलते बाढ़ का पानी एक तरफ हो गया और मंदिर डूबने से बच गया। इस तरह की घटना को कई भक्त भगवान शिव से सुरक्षा का वादा मानते हैं। इससे मंदिर के पवित्र होने और दैवीय होने की आस्था मजबूत हुई है।

पंच केदार में सबसे प्रमुख है केदारनाथ मंदिर

केदारनाथ मंदिर पंच केदार का महत्वपूर्ण मंदिर है। किंवदंतियों के अनुसार महाभारत की लड़ाई के बाद पांडव भगवान शिव का आशीर्वाद पाने उत्तराखंड गए थे। पांडवों से बचने के लिए भगवान शिव ने नंदी बैल का रूप धारण कर लिया था। पांडवों ने पीछा किया तो नदी बैल के रूप में भगवान शिव जमीन में घंस गए। उनके शरीर के अंग जहां प्रकट हुए वहां धार्मिक स्थल बन गए। इन्हें पंच केदार कहते हैं।

ये हैं पंच केदार के 5 मंदिर

केदारनाथ: यहां बैल का कूबड़ दिखा था।

तुंगनाथ: यहां बैल की भुजाएं दिखी थी।

रुद्रनाथ: यहां बैल का मुख दिखा था।

मध्यमहेश्वर: यहां बैल की नाभि प्रकट हुई थी।

कल्पेश्वर: यहां बैल के बाल प्रकट हुए थे।

सालभर में छह महीने खुलता है केदारनाथ मंदिर

केदारनाथ मंदिर तक पहुंचना आसान नहीं है। यहां की तीर्थयात्रा कठिन और शारीरिक रूप से थका देने वाली है। खराब मौसम की वजह से केदारनाथ मंदिर साल में केवल छह महीने अप्रैल से नवंबर तक तीर्थयात्रियों के लिए खुला रहता है। भारी बर्फबारी और खराब मौसम के कारण सर्दियों में केदारनाथ मंदिर बंद कर दिया जाता है।

केदारनाथ यात्रा गौरीकुंड से लगभग 16 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई वाली यात्रा है। यह सड़क मार्ग से सबसे नजदीकी सुलभ बिंदु है। तीर्थयात्री आमतौर पर पैदल यात्रा करते हैं। जो लोग पैदल नहीं चल सकते वे घोड़े और पालकी का इस्तेमाल करते हैं।

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