पहाड़ों में बदहाल स्वास्थ्य अव्यवस्थाओं के हाल किसी से छुपे नहीं
पहाड़ में रहने वाले लोगों की दुश्वारियां किसी चुनौती से काम नहीं
उत्तराखंड में दोनों ही राजनीतिक दलों द्वारा उत्तराखंड में सत्ता सुख भोगा गया लेकिन पहाड़ों में स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़कों की हाल किसी से छुपे नहीं है।
लोगों कहना है कि दोनों ही पार्टी के नेताओं ने पहाड़ की सीधी जनता को ठगने की सिवा कुछ नहीं दिया।
पहाड़ के नताओं ने चुनाव में पहाड़ की जनता को झूठे वादे कर सत्ता सुख भोगा लेकिन पहाड़ में विकास करने के नाम पर कुछ नहीं किया।
नेताओं ने अपने घर भरे और पहाड़ से पलायन कर हल्द्वानी और देहरादून में अपने रहने के ठिकाने बना लिए।
पहाड़ के नेता शहरों में निवास कर चुनाव लड़ने अवश्य पहाड़ जाते हैं। भोले भाले पहाड़ के लोग गुमराह कर चुनाव जीत जाते हैं उसके बाद अपने वादे भूल जाते हैं।
आखिर कब तक पहाड़ का निवासी अपने आप को इन राजनीतिक दलों द्वारा ठगा जाएगा।
पहाड़ के मरीजों की दुश्वारियां कम नहीं हो रही हैं। एक ओर पहाड़ में डॉक्टरों की कमी और ऊपर से रेफरल सेंटर का तमगा ले चुके इन अस्पतालों में मरीज को भर्ती कराने से कोई फायदा नहीं मिल रहा है।
बच्चे की आस लिए दर्द से कराहती मां के लिए इससे बड़ा दुखदायी पल क्या होगा कि उसे अपने ही शहर में इलाज नहीं मिल पाया।
पेट में मृत बच्चे को लेकर अपने शहर बागेश्वर से अल्मोड़ा और फिर हल्द्वानी पहुंची अकेली मां का दर्द नहीं है।
ऐसी परिस्थितियों से पहाड़ की हर महिला गुजरती है। आगे भी ऐसा न हो इसकी भी कोई गारंटी नहीं है।
बागेश्वर जिले में नदी गांव सैम मंदिर वार्ड निवासी 26 वर्षीय कविता भट्ट को सोमवार को दर्द उठने पर स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
अल्ट्रासाउंड जांच में बच्चे की मौत का पता चलने के बाद महिला का ऑपरेशन करना जरूरी था लेकिन वहां महिला रोग विशेषज्ञ के अवकाश में होने के कारण उसे 70 किमी दूर हायर सेंटर अल्मोड़ा रेफर कर दिया गया।
लेकिन अल्मोड़ा बेस अस्पताल से भी गर्भवती को फिर 90 किमी दूर हल्द्वानी रेफर कर दिया गया। सोमवार रात हल्द्वानी पहुंची गर्भवती की जांचों के बाद मंगलवार शाम को ऑपरेशन कर मृत बच्चे को बाहर निकाला गया है।