देहरादून। उत्तराखंड सरकार की पेपरलेस रजिस्ट्री प्रक्रिया को लेकर उत्साह चरम पर है लेकिन वकीलों के विरोध के सुर भी उतने ही बुलंद हो रहे हैं. सरकार का दावा है कि ऑनलाइन रजिस्ट्री से भ्रष्टाचार में कमी आएगी और व्यवस्था पारदर्शी बनेगी लेकिन वकीलों को इस नई प्रणाली से अपने रोजगार पर संकट मंडराता दिख रहा है।
देहरादून के रहने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल कांडपाल ने लोकल 18 से कहा कि पेपरलेस रजिस्ट्री लागू होने से हजारों वकीलों की रोजी-रोटी पर असर पडे़गा. अधिवक्ताओं के साथ काम करने वाले टाइपिस्ट, मुंशी और ऑफिस स्टाफ भी बेरोजगारी की चपेट में आ जाएंगे. सरकार को चाहिए कि अधिवक्ताओं के हितों की रक्षा के उपाय किए जाएं।
अधिवक्ता कुलविंदर सिंह ने भी ऑनलाइन रजिस्ट्री के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कहा कि इससे न सिर्फ वकीलों की आजीविका प्रभावित होगी बल्कि आम जनता को भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा. उन्होंने सवाल उठाया कि जनसेवा केंद्र में काम करने वाले लोग रजिस्ट्री की जटिल कानूनी प्रक्रिया को कैसे संभालेंगे. इससे तकनीकी दिक्कतें और फर्जीवाड़े बढ़ सकते हैं. निश्चित तौर पर आने वाले समय में इससे जुड़ी खामियां सामने आने लगेंगी।
कानूनी दांव-पेंचों की अनदेखी पर ऐतराज
अधिवक्ता नितिन वर्मा ने सरकार की नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि रजिस्ट्री की प्रक्रिया सिर्फ ऑनलाइन नहीं हो सकती क्योंकि इसमें कई कानूनी दांव-पेंच होते हैं. सीएससी संचालक के पास न तो पर्याप्त कानूनी ज्ञान होगा और न ही अनुभव. इससे भविष्य में कई विवाद और कानूनी उलझनें खड़ी होंगी।
डिजिटलाइजेशन के दुष्प्रभाव पर चेतावनी
अधिवक्ता अंकित चौरसिया ने डिजिटलाइजेशन के पक्ष में रहते हुए भी इसकी खामियों की ओर ध्यान दिलाया. उन्होंने कहा कि डिजिटल प्रणाली से पारदर्शिता तो बढ़ेगी लेकिन सरकार को उन हजारों लोगों के भविष्य की भी चिंता करनी चाहिए, जो इस प्रक्रिया से बेरोजगार हो जाएंगे. इसके अलावा ऑनलाइन सिस्टम में फर्जीवाड़े की आशंका भी बनी रहेगी।
भ्रष्टाचार पर लगेगी लगाम?
वकीलों की चिंताओं को खारिज करते हुए सत्ता पक्ष ने इसे ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का हिस्सा बताया है. सरकार का दावा है कि ऑनलाइन रजिस्ट्री से भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी और प्रक्रियाओं में पारदर्शिता आएगी. हालांकि वकीलों का विरोध इस मुद्दे को और गरमाने के संकेत दे रहा है।